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लप-लपा रही है लंपी, कहर के आसार

जौनपुर। लंपी यानी गाय और भैंसो में फैलने वाला एक ऐसा संक्रामक रोग जो तबाही का दूसरा नाम है। इन दिनों जनपद में यह बीमारी एक बार फिर तेजी से अपने पांव पसार रही है। विकासखंड सुजानगंज से शुरू हुई बीमारी का संक्रमण विकासखंड बदलापुर और इसके सुदूर इलाके घनश्यामपुर तक पहुंच चुका है। इधर विकासखंड सरकोनी में यह बीमारी कहर ढा रही है।

लंपी स्किन बीमारी एक वायरल रोग है. यह वायरस पॉक्स परिवार का है. लंपी स्किन बीमारी मूल रूप से अफ्रीकी बीमारी है इस बीमारी की शुरुआत जाम्बिया देश में हुई थी, जहां से यह दक्षिण अफ्रीका में फैल गई. यह बात 1929 की है. साल 2012 के बाद से यह तेजी से फैली है, हालांकि हाल ही में रिपोर्ट किए गए मामले मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व, यूरोप, रूस, कजाकिस्तान, बांग्लादेश (2019) चीन (2019), भूटान (2020), नेपाल (2020) और भारत (अगस्त, 2021) में पाए गए हैं.भारत जिसके पास दुनिया के सबसे अधिक (लगभग 303 मिलियन) मवेशी हैं, में बीमारी सिर्फ 16 महीनों के भीतर 15 राज्यों में फैल गई है। भारत में इसका पहला मामला मई 2019 में ओडिशा के मयूरभंज में दर्ज किया गया था।

मानसून की बारिश के बाद मच्छरों की संख्या बढ़ने से इस बीमारी से ग्रसित पशुओं की संख्या में इजाफा हुआ है। लंपी स्किन डिजीज यानी एलएसडी गाय और भैंसों में फैलने वाला एक संक्रामक रोग है तो तेजी से एक दूसरे में फैलता है। इसमें पशु की त्वचा पर गांठें हो जाती हैं। त्वचा खराब हो जाती है। इससे पशुओं में कमजोरी, दुधारू पशु में दूध क्षमता कम होना, गर्भपात, बांझपन, पशुओं के बच्चों में कम विकास, निमोनिया, पेरिटोनिटिस, लंगड़ापन या मौत हो सकती है।

लंपी बीमारी के लक्षण

पशु के शरीर का तापमान 106 डिग्री फारेनहाइट, भूख में कमी, चेहरे, गर्दन, थूथन, पलकों समेत पूरे शरीर में गोल उभरी हुई गांठें, फेफड़ों में संक्रमण के कारण निमोनिया, पैरों में सूजन, लंगड़ापन, नर पशु में काम करने की क्षमता में कमी आ जाती है। चिकित्सक कहते हैं कि इस रोग के फैलने की आशंका बीस प्रतिशत है और मृत्यु दर पांच प्रतिशत तक।

हालांकि एलएसडी का प्रकोप 50 किमी दायरे में तेजी से हो सकता है। बछड़े को मां से संक्रमण हो सकता है। देशी नस्ल केपशुओं की तुलना में क्रास ब्रीड में इसका असर ज्यादा होता है क्योंकि उनकी त्वचा पतली होती है। प्रभावित सांडों के सीमन से भी यह वायरस दूसरे पशु में जा सकता है।

इस कारण फैलता है यह रोग

यह रोग काटने वाली मक्खियों, मच्छरों एवं जूं केसीधे संपर्क में आने से पशुओं में फैलता है। दूषित दाने, पानी से भी यह फैल सकता है। संक्रमित पशु में कई बार दो से पांच सप्ताह तक लक्षण नहीं दिखते और फिर अचानक यह रोग नजर आ जाता है।

लंपी वायरस के संक्रमण से ठीक होने में मवेशी को दो से तीन हफ्ते लग जाते हैं। संक्रमित होने के बाद 5 से 7 दिन तक एंटी-बायोटिक देकर इलाज किया जाना चाहिए। इसके बाद ही आयुर्वेदिक और होमियोपैथी इलाज कारगर है। इसके अलावा इसकी वैक्सीन भी लगाई जाती है। पिछले साल भी लंपी वायरस फैला था। घबराने की जरूरत नहीं है। यह कहना है पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ धर्मेंद्र सिंह का। उनका दावा है कि यदि समुचित इलाज और बीमार पशु की देखभाल की जाए तो यह बीमारी ठीक हो सकती है।

लंपी लाइलाज नहीं, इलाज से हुए पशु स्वास्थ्य

डा.धर्मेंद्र सिंह का कहना है कि पिछले वर्ष संक्रमण के दौरान उन्होंने लंपी बीमारी का क्षेत्र में सफल इलाज किया। इस बीमारी मैं तत्काल जान जाने का खतरा नहीं बशर्ते बीमार पशु का इलाज और देखभाल किया जाए। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष लंपी संक्रमण के दौरान एंटीबायोटिक और एनाल्जेसिक – एंटी इन्फ्लेमेटरी कांबिनेशन ड्रग वेटशाट (Vetshot) काफी प्रभावी साबित हुआ था। ज्यादा संक्रमित पशुओं में इसके इंजेक्शन का प्रयोग किया गया जबकि शुरुआती अवस्था में इसकी बोलस ने अच्छे परिणाम दिए। इलाज के साथ-साथ पशुपालकों को बचाव के उपाय करने चाहिए। बीमार पशु को इलाज के साथ-सा द पौष्टिक और भरपूर भोजन मिलना चाहिए।

 

लंपी बीमारी की रोकथाम और बचाव के उपाय

● पशुओं के परजीवी कीट, मक्खी और मच्छर आदि को पनपने न दें

● पशुओं के रहने की जगह को साफ-सुथरा रखें

● संक्रमित पशु को झुंड से अलग रखें ताकि संक्रमण न फैले

● जहां वायरस का संकमण है, वहां स्वस्थ पशु को न जाने दें,

● वायरस के लक्षण दिखें तो तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करें

● स्वस्थ पशुओं का टीकाकरण जरूर कराएं

रोगी पशु के लिए संतुलित आहार

रोगी पशु को संतुलित आहार, हरा चारा, दलिया, गुड़, आदि खिलाएं, ताकि पशु में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि हो सके। पशु बाड़े या आवास के प्रवेश पर चूने की दो फुट चौड़ी पट्टी बनाएं। यह बीमारी पशुओं से मनुष्य में नहीं फैलती है। संक्रमित गाय का दूध कम से कम दो मिनट तक उबाल कर ही सेवन किया जाए।

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Author: fastblitz24

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