इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने धर्मांतरण पर किया अहम टिप्पणी
धर्मांतरण तत्काल रोकिए,आरोपी को जमानत देने से इनकार
प्रयाग । . . . और बहुसंख्यक आबादी एक दिन हो जाएगी अल्पसंख्यक ।यह टिप्पणी किसी चुनाव सभा की नहीं है नहीं किसी हिंदूवादी संगठन नेअपनी पक्ष में माहौल बनाने के लिए की है ।यह टिप्पणी की है इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने,धर्मांतरण के एक मामले पर विचार करते हुए । जो इस मामले की अहमियत और आने वाले कल की भयावहता की कहानी खुद कह रहा है ।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने धर्मांतरण को लेकर अहम टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में एससी/एसटी और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का ईसाई धर्म में अवैध धर्मांतरण बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। इसे तत्काल रोका जाना चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि लालच देकर धर्म बदलने का खेल जारी रहा तो देश की बहुसंख्यक आबादी एक दिन अल्पसंख्यक बन जाएगी।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने धर्मांतरण को लेकर अहम टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में एससी/एसटी और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का ईसाई धर्म में अवैध धर्मांतरण बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। इसे तत्काल रोका जाना चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि लालच देकर धर्म बदलने का खेल जारी रहा तो देश की बहुसंख्यक आबादी एक दिन अल्पसंख्यक बन जाएगी।
देश भर के लिए कोई एक धर्मांतरण विरोधी कानून नहीं है. लेकिन आठ राज्यों ने अपने-अपने कानून बनाए हैं जो जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए बनाए गए हैं. बीजेपी ने ऐसे एक राष्ट्रीय कानून की ज़रूरत की बात ज़रूर की है.
सन् २०२१ में उत्तर प्रदेश ने धर्मांतरण विरोधी कानून पारित किया और मध्य प्रदेश ने अपने 1968 के कानून में संशोधन किया.
जिस मामले पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की है वह उत्तर प्रदेश के हमीरपुर का है। एफआईआर में हमीरपुर निवासी शिकायतकर्ता रामकली प्रजापति के भाई रामफल को आरोपी कैलाश हमीरपुर से दिल्ली में आयोजित सामाजिक समारोह में भाग लेने के लिए ले गया था। मौदहा गांव के कई अन्य लोगों को भी सामाजिक समारोह में ले जाया गया और उनका धर्म परिवर्तन कर उन्हें ईसाई बना दिया गया। आरोपी कैलाश ने शिकायतकर्ता से वादा किया था कि उसके मानसिक रूप से बीमार भाई का इलाज कराया जाएगा और एक सप्ताह के भीतर उसे उसके पैतृक गांव वापस भेज दिया जाएगा। जब शिकायतकर्ता रामकली का भाई एक सप्ताह के बाद वापस नहीं लौटा, तो उसने आरोपी कैलाश से पूछा कि उसका भाई वापस नहीं आया है। इसका उसे कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।
आरोपी के वकील ने अदालत के सामने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता के भाई रामफल का धर्म परिवर्तन नहीं हुआ था, न ही वह ईसाई है। वह कई अन्य व्यक्तियों के साथ ईसाई धर्म और कल्याण समारोह में शामिल हुआ था।
राज्य की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता ने दलील दी कि ऐसी सभा आयोजित करके इन लोगों द्वारा बड़ी संख्या में लोगों को ईसाई बनाया जा रहा है, जिन्हें भारी मात्रा में पैसा मुहैया कराया जा रहा है।
उन्होंने न्यायालय के सामने गवाहों के विभिन्न बयानों का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि आरोपी कैलाश लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए गांव से ले जा रहा था और इस कार्य के लिए उसे भारी मात्रा में धन दिया जा रहा था। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने मामले से जुड़े पक्षों के अधिवक्ताओं को सुना और रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री का अवलोकन किया।
इसके उपरांत अपने फैसले में न्यायमूर्ति रोहित ने अपने फैसले में कहा कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 25 अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, अभ्यास और प्रचार का प्रावधान करता है, लेकिन यह एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण का प्रावधान नहीं करता है।
न्यायालय ने कहा कि उसके संज्ञान में कई मामलों में यह बात आई है कि उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और आर्थिक रूप से गरीब व्यक्तियों सहित अन्य जातियों के लोगों का ईसाई धर्म में धर्मांतरण करने की गैरकानूनी गतिविधि बड़े पैमाने पर की जा रही है। न्यायालय ने कहा कि उसने प्रथम दृष्टया पाया है कि आरोपी जमानत के लिए हकदार नहीं है। इसलिए, इस मामले में शामिल आरोपी की जमानत याचिका को खारिज कर दिया जाता है।