रिटायरमेंट से ठीक पहले CJI चंद्रचूड़ ने बीमार बेटे के लिए इच्छा मृत्यु मांगने वाले माता-पिता दिलवाई निःशुल्क चिकित्सा व्यवस्था
दिल्ली । सेवा निवृति के ठीक पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने एक ऐसा फैसला सुनाया जो न्याय व्यवस्था का मानवीय चेहरा बन गया। यह फैसला एक लंबे समय तक याद रखा जाएगा और दूसरों के लिए नजीर बनेगा। लाइलाज बीमारी से जूझ रहे अपने बेटे के लिए इच्छा मृत्यु मांग रहे निराश बूढ़े माता पिता को यूपी सरकार से पूर्ण चिकित्सा मदद दिलवाने के स्पष्ट निर्देश दिए। उन्होंने 11 साल से गंभीर बीमारी से जूझ रहे युवक को निःशुल्क सरकारी चिकित्सा सहायता मरीज के आवास पर देने के सरकार को निर्देश दिए।
देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ 10 नवंबर को सेवानिवृत्त हुए, मगर सेवानिवृत्ति से ठीक पहले उन्होंने एक ऐसा फैसला सुनाया, जिसने सहानुभूति की मिसाल कायम की। पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने बेटे के लिए इच्छा मृत्यु मांग रहे बूढ़े माता पिता को यूपी सरकार से मदद दिलाई। उन्होंने 11 साल से गंभीर बीमारी से जूझ रहे युवक को सरकारी चिकित्सा सहायता देने के सरकार को निर्देश दिए। लंबे समय से बिस्तर पर अपनी जिंदगी से जंग लड़ रहे युवक को अब घर पर ही इलाज मुहैया कराया जाएगा। डॉक्टर, फिजियोथेरेपिस्ट घर जाकर उसका उपचार करेंगे और सरकार दवाइयों समेत इलाज का पूरा खर्च वहन करेगी।
प्राप्त जानकारी के अनुसार
नोएडा का युवक हरीश राणा पंजाब विवि का छात्र था। 2013 में वह अपने पीजी आवास की चौथी मंजिल से गिर गया था। इसके बाद उसके सिर में गंभीर चोट आई। युवक के परिजनों ने उसके इलाज के लिए हर संभव मदद की। वे उसे कई डॉक्टरों के पास ले गए। सभी डॉक्टरों ने जवाब दिया कि युवक के ठीक होने की कोई गुंजाइश नहीं है। वह 11 साल से बिस्तर पर पड़ा है और 100 फीसदी विकलांग है। उसके शरीर पर गहरे और बड़े घाव हो गए हैं।
घर बिक गया, बूढ़े मां-बाप के पास कुछ न बचा
युवक की बीमारी ने इस कदर परिवार पर कहर बरपाया कि सब कुछ बिक गया। माता निर्मला देव और पिता अशोक राणा अपने बेटे के ठीक होने की आस में सब कुछ भूल गए। घर को बेचना पड़ गया। अब बूढ़े माता-पिता का जीवन यापन करना कठिन हो रहा है। इसे लेकर माता-पिता ने दिल्ली हाईकोर्ट में बेटे के लिए इच्छा मृत्यु याचिका दायर की थी। जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था।
पूर्व मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने यह कहा
दिल्ली हाईकोर्ट से इच्छा मृत्यु की याचिका खारिज होने के बाद युवक के माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई। याचिका पर मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने आठ नवंबर को सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि युवक को इच्छा मृत्यु नहीं दी जा सकती है, क्योंकि वह अपने जीवन को बनाए रखने के लिए वेंटीलेटर पर नहीं है। बल्कि उसे नली के जरिये भोजन दिया जा रहा है। मुख्य न्यायाधीश ने मामले को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय को रिपोर्ट सौंपने और युवक को नि:शुल्क चिकित्सा सहायता मुहैया कराने के निर्देश दिए।
अब मिलेगी यह मदद
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार हरीश राणा को घर पर चिकित्सा सहायता मुहैया कराएगी। उसके घर पर नियमित फिजियोथेरेपिस्ट और आहार विशेषज्ञ जाएंगे। एक कॉल पर डॉक्टर इलाज करने पहुंचेंगे। घर पर नर्सिंग इंतजाम होंगे और सभी दवाइयां नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाएंगीं। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि युवक की घर पर देखभाल नहीं की जा सकती तो उसे जिला अस्पताल नोएडा में इलाज मुहैया कराया जाए। यदि संभव हो तो इलाज और देखभाल के लिए गैर सरकारी संगठनों की भी मदद ली जा सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर युवक के माता-पिता को भविष्य में जरूरत पड़ती है तो वे कोर्ट आ सकते हैं।