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“अगस्त क्रांति 1942 : हैदरपुर और आसपास के गाँवों की शहादत की गाथा”

जौनपुरअगस्त क्रांति 1942 का प्रभाव जिले में इतना रहा कि युवा नौजवान और छात्र अंग्रेजों के खिलाफ सड़क पर उतर आए थे। सरकारी कार्यालयों पर कब्ज़ा करने की नीयत से उनकी टोली ने राजमार्ग पर नियंत्रण करने का प्रयास किया। बक्शा क्षेत्र के पश्चिमी इलाक़े के नौजवानों ने बदलापुर थाना और धनियामऊ पुल पर ध्यान केंद्रित किया।

क्षेत्र के हैदरपुर निवासी जमींदार सिंह और औका निवासी रामनरेश शर्मा सैकड़ों युवाओं के साथ पुल की ओर बढ़े। शर्मा जी ने एक टुकड़ी के साथ बदलापुर थाना पर कब्ज़ा करने का प्रयास किया, जबकि दूसरी टोली जमींदार सिंह के साथ पुल को क्षतिग्रस्त करने लगी।

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सूचना पाकर अंग्रेज पुलिस का दस्ता वहाँ पहुँच गया और चेतावनी दी। युवाओं में इतना जोश था कि पुलिस से नोकझोंक शुरू हो गई। इसके बाद अंग्रेजों ने गोली चलानी शुरू कर दी, जिससे जमींदार सिंह गिर पड़े। उनके कई साथी जैसे शिवकृष्ण सिंह, सूबेदार सिंह आदि को भी छर्रे लगे। माहौल गमगीन हो गया और भगदड़ मच गई। इसी बीच पदारथ, रामनिहोर और रामधार ने भी दम तोड़ दिया।

16 अगस्त की इस घटना से आक्रोशित पुलिस ने इनके दो अन्य सहयोगी—अगरौरा निवासी रामानंद और रघुराई—की बेरहमी से पिटाई करने के बाद, 23 अगस्त को उनके घर के पास स्थित चिलबिल के पेड़ की डाल पर बाँधकर गोली मार दी। इसके बाद गाँव वालों को चेतावनी दी कि लाश तीन दिन तक नहीं उतारी जाएगी, अन्यथा गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

इन घटनाओं के बाद हैदरपुर सहित आसपास के कई गाँवों के युवा भयवश पलायन कर गए। गाँव में मातम छा गया। अगस्त माह भर पुलिस गश्त करती रही और ग्रामीण दहशत में जीते रहे।

ठेकेदार संघ के अध्यक्ष चंद्र प्रकाश सिंह ‘बिंदु’ ने बताया कि उक्त शहीदों की याद में अब कई कार्यक्रम आयोजित किए जाएँगे।

 

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Author: fastblitz24

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