दिल्ली. देश के ईसाई अधिकार कार्यकर्ताओं ने भारत में धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ बढ़ती हिंसा पर 4 नवंबर (बुधवार) को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक रिपोर्ट जारी की. प्रेस कॉन्फ्रेंस में जारी बयान में दावा किया गया कि साल 2014 के बाद से ईसाइयों को निशाना बनाने वाले घृणा अपराधों (हेट क्राइम) में 500% की वृद्धि हुई है.

बयान में कहा गया है, ‘2014 से 2024 के बीच ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं 139 से बढ़कर 834 हो गईं हैं, यानी सिर्फ दस साल में 500% की वृद्धि हुई है. इन 12 वर्षों में कुल 4,959 घटनाएं दर्ज की गईं, जिनसे देशभर में ईसाई व्यक्ति, परिवार और संस्थाएं प्रभावित हुईं. यह हर साल औसतन 69.5 घटनाओं की बढ़ोतरी दर्शाता है, जो आकस्मिक नहीं बल्कि एक सतत और संगठित पैटर्न को दिखाता है.’


कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए सिस्टर मीनाक्षी ने हिंदुत्व समूहों द्वारा ईसाइयों पर हमलों के कई उदाहरण गिनाए. उन्होंने कहा, ‘लोगों को धर्म के आधार पर बांटने की एक संगठित कोशिश चल रही है. मानवाधिकार कार्यकर्ता माइकल विलियम्स ने कहा कि ‘धर्मांतरण’ का मुद्दा हर चुनाव से पहले सरकार द्वारा ‘राजनीतिक हथियार’ की तरह इस्तेमाल किया जाता है.
वकील तहमीना अरोड़ा ने आदिवासी ईसाइयों पर हो रहे अत्याचारों का ज़िक्र करते हुए कहा कि उन्हें ईसाई धर्म अपनाने के कारण ‘अत्याचार और सामाजिक बहिष्कार’ झेलना पड़ रहा है. उन्होंने बताया, ‘भारत में करीब 70 लाख जनजातीय ईसाई हैं. ये लोग देश के सबसे दूरदराज इलाकों में रहते हैं और बेहद असुरक्षित हैं, इसी कारण इन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है. अरोड़ा ने छत्तीसगढ़ से उदाहरण देते हुए कहा कि ‘वहां जनजातीय समुदाय से आने वाले ईसाइयों को सताने की एक सुनियोजित कोशिश हो रही है.’
उन्होंने बताया, ‘जनवरी 2025 में बस्तर की एक महिला कनिका कश्यप पर इसलिए हमला किया गया क्योंकि उसने धर्म परिवर्तन किया था. वह गर्भवती थी और इस हमले में उन्हें गर्भपात हो गया. उन्होंने पुलिस में शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. फिर जुलाई 2025 में जमशेदपुर के एक घर पर हमला हुआ, जहां लोग खाने पर इकट्ठा हुए थे. किसी ने अफवाह फैलाई कि वहां धर्मांतरण हो रहा है, जिसके बाद भीड़ ने घर पर हमला कर दिया. बाद में पुलिस जांच में पता चला कि वह सिर्फ एक साधारण रात्रिभोज का आयोजन था. अरोड़ा ने कहा, ‘आज हालात ऐसे हैं कि ट्रेन में सफर करना, साथ खाना या सिर्फ़ नन होना भी धर्मांतरण का आरोप लगने का कारण बन सकता है. यही वजह है कि हमने आज यहां चाय तक नहीं रखी, कहीं कोई यह न सोच ले कि हम धर्मांतरण करवा रहे हैं. उन्होंने कहा कि जनजातीय ईसाइयों को सामाजिक बहिष्कार का सामना भी करना पड़ता है, जो एक बेहद प्रभावी भेदभाव का तरीका है.
अरोड़ा कहते हैं, ‘उनका बहिष्कार करने के लिए लोगों को उनसे बात करने से मना कर दिया जाता है. जो लोग ईसाइयों से बात करते हैं या उन्हें सामाजिक कार्यक्रमों में बुलाते हैं, उन पर जुर्माना लगाया जाता है. ईसाइयों के घर जला दिए जाते हैं, खेत नष्ट किए जाते हैं, पशु छीन लिए जाते हैं, रोजगार से वंचित किया जाता है, यहां तक कि उन्हें अपने मृतकों को दफनाने की अनुमति भी नहीं दी जाती. उन्होंने बताया कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, लेकिन अदालत ने कहा कि ‘उसके हाथ बंधे हैं’ और समाज को खुद आगे आने को कहा.
अरोड़ा ने कहा, ‘आज सामाजिक बहिष्कार एक बड़ा संकट बन चुका है. लोगों पर ‘घर वापसी’ के ज़रिए अपने पुराने धर्म में लौटने का दबाव बनाया जा रहा है. लेकिन आस्था कोई हल्की चीज़ नहीं होती, यह एक गहरी निष्ठा होती है. असली ‘बलपूर्वक धर्मांतरण’ यही है.. जब किसी को अपनी चुनी हुई आस्था छोड़ने पर मजबूर किया जाए.’
प्रेस बयान के अनुसार, साल 2025 के पहले नौ महीनों में ईसाइयों के खिलाफ 579 घटनाएं दर्ज की गईं, लेकिन सिर्फ 39 मामलों में एफआईआर दर्ज हुई. इनमें 71 डराने-धमकाने के मामले, 51 प्रार्थना से रोकने, 9 शारीरिक हमले, और 7 संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के मामले शामिल हैं. रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले दशक में हर साल औसतन 69.5 नए घृणा अपराध बढ़े हैं, जिनमें से 76% मामले सिर्फ पांच राज्यों से आए हैं. उत्तर प्रदेश में ऐसी सर्वाधिक घटनाएं हुईं, जहां कुल मामलों का 31.6% दर्ज किया गया.
कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया क पुलिस अधिकारी ईसाई पीड़ितों की शिकायतें दर्ज करने से इनकार कर रही हैं, जिससे अपराधियों में दंडहीनता का माहौल बना है. उन्होंने कहा कि 2016 से 2020 के बीच कम से कम 21 ईसाइयों की हत्या नफरत आधारित अपराधों में हुई, जिनमें राजस्थान में एक व्यक्ति की जानबूझकर बिजली का झटका देकर हत्या करना शामिल है. कई ईसाई अधिकार संगठनों ने अब इन मुद्दों को केंद्र सरकार के समक्ष उठाने के लिए राष्ट्रीय ईसाई सम्मेलन आयोजित करने का फैसला किया है, जो 29 नवंबर को दिल्ली के जंतर मंतर पर आयोजित होगा. सम्मेलन के बयान में कहा गया, ‘यह कोई राजनीतिक आंदोलन नहीं है, बल्कि ईसाई नागरिकों के बीच संवैधानिक संवाद है, जो अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का उपयोग कर रहे हैं. लगातार बढ़ती हिंसा, पुलिस की निष्क्रियता और न्याय की अनुपलब्धता का समाधान खोजना अब ज़रूरी हो गया है.’
Author: fastblitz24



