निंदा और चुगली दोनों बेहद जहीन और संजीदगी वाला कार्य है। जीवन में एक निंदक का होना अति आवश्यक है। निंदा या चुगली मात्र आधुनिक काल की कला नहीं है । यह ऐतिहासिक महत्व की कला है। राजा महाराजाओं के काल में राजा महाराजा अपने पास ऐसे लोगो को रखते थे,जो चुगलखोर होते थे जिन्हे वह दरबारी कहते थे।
लेकिन कबीर दास ने यह साफ साफ नहीं बताया कि किसकी चुगली करने वाले अपने पास रखना है। इसलिए हुआ यूं कि राजा महाराजाओं ने समझा कि दूसरो की निन्दा करने वाले लोगों को अपने पास रखना चाहिए । कबीर दास को यह उसी समय स्पष्ट लिखना था कि निंदक तो रखो लेकिन अपनी बुराई करने वालो को । इस कंफ्यूजन से ही तो यह गड़बड़ हुई।
विचारक,चिंतक,लेखक और कवि डॉ. डी. आर. विश्वकर्मा भी आपको सचेत कर रहे हैं. ध्यान से पढ़िए और अपनी प्रक्रिया दीजिए.
निंदा में,मसगूल
एक दूसरे की निन्दा में,
सभी लगे इंसान।
निन्दा सबकी कर डालें,
चाहे,सम्मुख हो भगवान ।।
निंदा सम है पाप नहीं,
और जगत में दूजा।
निंदा करते यदि फिरते हो,
व्यर्थ तुम्हारी पूजा ।।
पाप विरत जीवन जीना,
है।निंदा से हों दूर।
अंतःकरण पवित्र बने,व,
सुख शांति,मिले भरपूर।।
आलोचना से,दोष दूर हो,
कमियाँ और बुराई ।
प्रेरित करती है,सुधार को,
कुछ का,कहना भाई।।
निंदा दोष ढूँढती सबमें, वस्तु व्यक्ति या हो विचार।
निंदा में मशगूल रहे सब,
बचा न कोई,घर परिवार।।
दोष देखना,दोष खोजना,
निंदक का,नित शोध।
कलुषित भाव जगाती है,
बढ़ता इससे,भी प्रतिरोध।।
छिद्रान्वेषण की आदत,
से,बढ़ जाती,है दूरी।
कुछ का भोजन,नहीं पचे,
निंदा करना,मजबूरी।।
कुछ स्वभाव व आदत से,
निंदा,ईर्ष्या वश करते।
क्षणिक लाभ के खातिर,
वे,पाप शरीर में भरते।।
निंदा रस को,कवियों ने,
दसवाँ रस है माना ।
निंदा रस से,दूर रहेंगे,
हम सबने,अब ठाना।।
रचनाकार: डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
सुन्दरपुर, वाराणसी
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Author: fastblitz24
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