सिकरारा: सिकरारा में आयोजित कथा के चौथे दिन पं. उमादास जी महाराज ने कर्म और क्रिया पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जीवन में सत्कर्म और दुष्कर्म का प्रभाव होता है। उन्होंने समाज को अच्छी दिशा देने के लिए निरीक्षण को बहुत जरूरी बताया।
पं. उमादास जी महाराज ने कथा के माध्यम से दर्शाया कि बिना निरीक्षण किए कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए। निरीक्षण सफलता की कुंजी है। उन्होंने ऋषि सौभरि का उदाहरण देते हुए बताया कि बिना निरीक्षण के शादी का फैसला लेने से उनका तपोबल नष्ट हो गया। इसी प्रकार, हमारा जीवन भी बिना निरीक्षण के सही रास्ते और विकास की ओर नहीं जा सकता।

कथा में ऋषि सौभरि के जीवन का वर्णन किया गया, जिन्होंने जल में तपस्या करते समय मछली के जोड़े को देखकर पत्नी की लालसा की। उन्होंने 60 ऋषियों से सुंदर कन्या की मांग की, लेकिन जब ऋषि मौन रहे, तो उन्होंने उन्हें पत्थर बनाने का श्राप देने की कोशिश की। नारद जी ने आकर उन्हें बचाया और अयोध्या नरेश मांधाता की 50 कन्याओं के पास भेजा। ऋषि कुरूप थे, इसलिए उन्होंने अपने तपोबल से सुंदर शरीर धारण किया और कन्या से विवाह किया। जब उनका तपोबल समाप्त हुआ, तो उन्हें बहुत पछतावा हुआ
पं. उमादास जी महाराज ने कहा कि हर व्यक्ति को यह निरीक्षण करना चाहिए कि वह क्या कर रहा है। जीवन को सरल बनाने और समाज की बुराइयों को दूर करने के लिए कथा का श्रवण जरूरी है। इससे एक अच्छे समाज का निर्माण हो सकता है।
इस अवसर पर क्षेत्र के हजारों भक्तगण उपस्थित रहे।

Author: fastblitz24



