भारत में आरक्षण एक संवैधानिक अधिकार है, जिसका उद्देश्य सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से वंचित वर्गों को समान अवसर प्रदान करना है। लेकिन हाल के वर्षों में जिस तरह से रोस्टर प्रणाली को लागू किया गया है, उससे आरक्षण की मूल भावना और उद्देश्य पर गंभीर संकट मंडराता दिखाई दे रहा है। विशेषकर अनुसूचित जाति (दलित) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षित पदों को अप्रत्यक्ष रूप से समाप्त किया जा रहा है।
क्या है रोस्टर प्रणाली?

रोस्टर प्रणाली के तहत शैक्षणिक संस्थानों एवं सरकारी नौकरियों में नियुक्तियों के लिए एक निर्धारित क्रम के अनुसार आरक्षित वर्गों को स्थान दिया जाता है। पहले यह प्रणाली विश्वविद्यालय को एक यूनिट मानकर लागू होती थी जिससे आरक्षित वर्गों को अपेक्षाकृत अधिक अवसर मिलते थे। लेकिन अब यह प्रणाली विभागवार लागू की जा रही है, जिससे आरक्षित पदों की संख्या में कटौती हो रही है।
यदि किसी विश्वविद्यालय में केवल 4 पद निकाले जाएं और वे चारों पद सामान्य श्रेणी के लिए आरक्षित हों, तो एससी, एसटी व ओबीसी वर्ग के लिए अवसर स्वतः समाप्त हो जाते हैं। जब नियुक्तियां विभागवार और सब्जेक्ट स्पेशलाइजेशन के आधार पर की जाती हैं, तो आरक्षण केवल कागजों पर ही सिमट कर रह जाता है।
13-प्वॉइंट रोस्टर प्रणाली:
इस प्रणाली के अनुसार पदों का आरक्षण निम्न प्रकार से होता है:
1. UR, 2. UR, 3. OBC, 4. UR, 5. SC, 6. UR, 7. OBC, 8. UR, 9. UR, 10. SC, 11. UR, 12. ST, 13. UR
13 पदों के इस चक्र में केवल 2 पद ओबीसी, 2 पद एससी और 1 पद एसटी को मिलते हैं।
शेष 8 पद सामान्य वर्ग (UR) के लिए आरक्षित रहते हैं।
14वें पद से यह चक्र पुनः आरंभ होता है।
यह प्रणाली छोटे विभागों में लागू की जा रही है जहां पदों की संख्या बहुत कम होती है, जिससे आरक्षित वर्गों को अवसर मिल ही नहीं पाते।
100-प्वॉइंट रोस्टर प्रणाली क्या है?
यह एक व्यापक प्रणाली है जिसमें 100 पदों के लिए आरक्षण निम्न अनुपात में लागू होता है:
SC – 15%,
ST – 7.5%,
OBC – 27%,
EWS – 10%,
General (UR) – लगभग 40-41%
इस प्रणाली से हर वर्ग को उसकी जनसंख्या व सामाजिक स्थिति के आधार पर उचित प्रतिनिधित्व मिल पाता है।
आरक्षण का आधार – केवल जनसंख्या नहीं, सामाजिक पिछड़ापन:
आरक्षण केवल आर्थिक स्थिति नहीं, बल्कि सामाजिक अपमान, छुआछूत और ऐतिहासिक शोषण के खिलाफ एक संवैधानिक उत्तर है। डॉ. भीमराव आंबेडकर ने भी यह स्पष्ट किया था कि आरक्षण का मूल उद्देश्य सामाजिक बराबरी सुनिश्चित करना है।
ओबीसी आरक्षण की अवधारणा मंडल आयोग की रिपोर्ट से आई, जिसका उद्देश्य सामाजिक न्याय था, परंतु यह एससी-एसटी आरक्षण के बाद की प्राथमिकता है। इसलिए रोस्टर प्रणाली में अनुसूचित जाति और जनजातियों को पहले आरक्षण मिलना चाहिए, उसके बाद ओबीसी को।
विश्वविद्यालय को यूनिट मानना क्यों जरूरी?
यदि पूरे विश्वविद्यालय को एक यूनिट मानकर आरक्षण लागू किया जाए, तो सभी वर्गों को उनका उचित प्रतिनिधित्व मिल सकता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी विश्वविद्यालय में 100 पद हैं, तो पूरे पदों के आधार पर आरक्षण लागू होने से हर वर्ग को उसका हिस्सा मिलेगा।
इसके विपरीत, विभागवार पदों की गणना करने से एससी, एसटी और ओबीसी वर्गों के लिए पद ही नहीं बचते। इससे दलितों को मानसिक तनाव का भी सामना करना पड़ता है, क्योंकि उन्हें सामान्य श्रेणी में आवेदन करने के बावजूद उनका सामाजिक वर्ग उन्हें चयन प्रक्रिया में बाधा बनाता है।
13 प्वॉइंट रोस्टर प्रणाली तकनीकी रूप से आरक्षण को समाप्त करने का एक जरिया बन चुकी है। जब तक संसद इस पर ठोस कानून नहीं बनाती, यह खेल प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से चलता रहेगा। जरूरत है कि सभी जागरूक नागरिक, सामाजिक संगठन और आरक्षित वर्ग एकजुट होकर संसद और सरकार पर दबाव बनाएं ताकि सामाजिक न्याय की भावना सुरक्षित रह सके।

Author: fastblitz24



