शिवालयों से लेकर नदी तट पर लगी रही भक्तों की कतार, चढ़ाया दूध-लावा
जौनपुर। सोमवार को जिला मुख्यालय से लेकर ग्रामीणांचल तक तालाब, नदी तट और बगीचों में महिलाओं द्वारा नाग देवता की पूजा वैदिक रीति रिवाज से भक्तों द्वारा किया गया। कुछ स्थानों पर नदी तट स्थित शिवालयों पर जाकर भगवान शिव की पूजा करने के बाद नाग देवता को दूध, लावा के साथ जलाभिषेक किया गया। पूजन-पाठ के पहले हिंदू धर्मावलंबियों ने नदी और तालाब में स्नान करने के बाद दूध के साथ लावा, भगा चना चढ़ाकर बचे दूध को रास्ते से लेकर मकान तक कोने-कोने में छिड़कने का दृश्य देखा गया। ऐसी मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन शिव सहित नाग की पूजा करने से जहां तीनों प्रकार के कष्ट दूर होते हैं वहीं धन-धान्य से जीवन मंगलमय होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादातर तालाब किनारे स्थित भगवान शिव के तैलीय चित्र पर माल्यार्पण करने के बाद अगरबत्ती दिखाते हैं और बाद में उनके नाम पर दूध लावा और चना चढ़ाकर मौजूद लोगों में लावा और चना बांटा जाता है। महिलाओं द्वारा प्राय: यह पूजा प्रभातकाल में करने के बाद तब नदी किनारे स्थित मैदान या तालाब के पास स्थित बगीचे में खेलकूद का कार्यक्रम बच्चों द्वारा शुरू किया जाता है जो देर शाम तक चलता रहता है। एक समय वह था जब नाग पंचमी के दिन पूजा के बाद कजरी का मेला लगता था और उस मेले में मुख्य रूप से कुश्ती से लेकर, ऊंची कूद, लंबी कूद में बच्चों से लेकर युवा तक भाग लेते थे।
विदित हो कि दरअसल हिन्दू धर्म के अनुसार सृष्टि पालनहार भगवान विष्णु भी शेषनाग पर विराजमान हैं। वहीं नाग देवता भगवान शिव के प्रिय गणों में से एक हैं। ऐसे में इस दिन भगवान शिव और नाग देवता की उपासना करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है. ब्रह्म पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने सांपों को नाग पंचमी के दिन पूजे जाने का वरदान दिया था।
नाग पंचमी पर भगवान शिव की पूजा-आराधना के साथ उनके गले की शोभा बढ़ाने वाले नाग देवता की विधिवत पूजा अर्चना होती है। कहा जाता है कि नाग की पूजा करने से सांपों के डसने का भय नहीं रहता है। साथ ही जीवन की सभी समस्याएं भी समाप्त हो जाती हैं। इस दिन नाग देवता की आराधना करने से भक्तों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। दरअसल जो नाग शिव शंकर के गले में रहते हैं वो और कोई नहीं नागों के राजा वासुकि है। जो हर समय भोलेनाथ के गले से लिपटे रहते हैं। एक कथा के अनुसार वासुकि भगवान शिव के परम भक्त थे। माना जाता है कि नाग जाति के लोगों ने ही सबसे पहले शिवलिंग की पूजा का प्रचलन शुरू किया था।